आगे नदिया पड़ी अपार
घोड़ा कैसे उतरे उस पार,
राणा ने सोचा इस पार
तब तक चेतक था उस पार.
प्रताप का सिर कभी नहीं झुका,
इस बात से अकबर भी शर्मिंदा था,
मुगल कभी चैन से सो न सके
जब तक मेवाड़ी राणा जिन्दा था.
शत-शत नमन उस मेवाड़ी प्रताप को
जो अपने भाले से दुश्मनों को मारे थे,
मातृभूमि की स्वतन्त्रता के खातिर
कई वर्ष जंगल में गुजारे थे.
हे प्रताप मुझे तु शक्ती दे, दुश्मन को मै भी हराऊंगा
मै हु तेरा एक अनुयायी, दुश्मन को मार भगाऊंगा
था साथी तेरा घोड़ा चेतक, जिस पर तु सवारी करता था
थी तुझमे कोई खास बात, कि अकबर तुझसे डरता था
ये हिन्द झूम उठे गुल चमन में खिल जाएँ
दुश्मनों के कलेजे, नाम सुन के हिल जाएँ
कोई औकात नहीं चीन-पाक जैसे देशों की
वतन को फिर से जो राणा प्रताप मिल जाएँ
करता हुं नमन मै प्रताप को, जो वीरता का प्रतीक है
तु लोह-पुरुष तु मातॄ-भक्त, तु अखण्डता का प्रतीक है