पंखों को फड़फड़ा कर,हर फूल पर वो मंडराती है।
घूम-घूम कर सारे फूलों की,खुशबू वो ले जाती है।
फूलों का मीठा रस पीकर,दूर जाकर पंखों को सहलाती है।
रंग बिरंगी तितली रानी,बड़ी सयानी।
ख़ुदा तू भी नहीं, मैं भी नहीं – हिंदी कवितागलतियों से जुदा तू भी नहीं और मैं भी नहीं,दोनों इंसान हैं खुदा तू भी नहीं, मैं भी नहीं।गलतफहमियों ने कर दी दोनों में पैदा दूरियां,वरना फितरत का बुरा तू भी नहीं मैं भी नहीं।अपने अपने रास्तों पे दोनो का सफ़र जारी रहा,एक लम्हें को रुका तु भी नहीं मैं भी नहीं ।चाहते बहुत थे दोनों एक दूसरे कोमगर ये हक़ीक़त मानता तु भी नहीं मैं भी नहीं।गलतियों से जुदा तू भी नहीं और मैं भी नहीं,दोनों इंसान हैं ख़ुदा तू भी नहीं, मैं भी नहीं।
मुस्कुरा दिया करता हूँउलझनें है बहुतसुलझा लिया करता हूँफोटो खिंचवाते वक्त मैं अक्सरमुस्कुरा दिया करता हूँ…!क्यों नुमाइश करू मैं अपनेमाथे पर शिकन कीमैं अक्सर मुस्कुरा केइन्हें मिटा दिया करता हूँक्योंकिजब लड़ना है खुद को खुद ही से……!तो हार और जीत में कोई फर्क नहीं रखता हूं….!हारूं या जीतूं कोई रंज नहींकभी खुद को जिता देता हूँकभी खुद ही जीत जाया करता हूंइसलिए भी मुस्कुरा दिया करता हूँ..
तेरा साथ न मिला – हिंदी कविताहाथ थाम कर भी तेरा सहारा न मिलामें वो लहर हूँ जिसे किनारा न मिलामिल गया मुझे जो कुछ भी चाहा मैंनेमिला नहीं तो सिर्फ साथ तुम्हारा न मिलावैसे तो सितारों से भरा हुआ है आसमान मिलामगर जो हम ढूंढ़ रहे थे वो सितारा न मिलाकुछ इस तरह से बदली पहर ज़िन्दगी की हमारीफिर जिसको भी पुकारा वो दुबारा न मिलाएहसास तो हुआ उसे मगर देर बहुत हो गयीउसने जब ढूँढा तो निशान भी हमारा न मिला
जीना सिखाए जा रहा है – हिंदी कवितादिन-बदिन,तेरी आदत मुझको लगाए जा रहा है।तुझे पाया नहीं अबतक,तुझे खोने का डर सताए जा रहा है।मेरे हाथों से छीनकर,अपने हिसाब से जिंदगी चलाए जा रहा है।तेरे आने से,दिल मेरा, अब उसको भुलाए जा रहा है।कुछ हुआ है अलग,तेरे आने से, बताए जा रहा है।एक बार फिर से,मुझको जीना, सिखाए जा रहा है।
आओ हम सब झूला झूलें पेंग बढ़ाकर नभ को छूलें
है बहार सावन की आई देखो श्याम घटा नभ छाई
अब फुहार पड़ती है भाई ठंडी – ठंडी अति सुखदायी
कुहू – कुहू कर गाने वाली प्यारी कोयल काली – काली
बड़ी सुरीली भोली – भाली गाती फिरती है मतवाली
हम सब भी गाकर झूलें पेंग बढ़ाकर नभ को छूलें
मोर बोलता है उपवन में मास्त हो रहा है नर्तन में
चातक भी बोला वन में आओ हम सब झूला झूलें पेंग बढ़ाकर नभ को छूलें
एक निशानी हूँ मैंरख सकों तो एक निशानी हूँ मैंखो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैंरोक ना पाए जिसको ये सारी दुनियावो एक बूंद आँख का पानी हूँ मैं…सबको प्यार देने की आदत है हमेंअपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमेंकितना भी गहरा जख़्म दे कोईउतना ही ज्यादा मुस्कुरानें की आदत है हमें..इस अजनबी दुनिया में अकेला ख़्वाब हूँ मैंसवालों से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैंजो समझ ना सके मुझे उनके लिए कौनजो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं..आँख से देखोगे तो खुश पाओगेदिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैंअगर रख सकों तो एक निशानी हूं मैंखो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं…
रोज सुबह सूरज आसमान में आकर, हम सबको नींद से जगाता है।
शाम हुई तो लाली फैलाकर, अपने घर को चला जाता है।
दिन भर खुद को जला जलाकर, यह प्रकाश फैलाता है।
कभी नहीं करता आलस्य, रोज नियम से समय पर आता जाता।
कभी नहीं करता है घमंड, बादलों के संग भी लुकाछिपी खेलता है।
उसका जीना ही जीना है, जो काम सभी के आता है।