माँ तेरी पुकार ना सुन पाया था, जब धरती माँ ने पुकारा था
राखी भी याद ना आई, जब धरती मेरी लहू लुहान हुई
प्रिये तेरा स्नेह भी भुला, जब शंखनाद युद्ध का गूंज उठा
श्रृंगार वीर का धर लिया अब, सम्मुख केवल विजयपथ दिखा
लहू से धरती सींचने को उतावले, युद्ध की रणभेरी बजाने चले
तेरी रक्षा करते हुए चाहे, प्राण भी मेरे निकल जाए
पर अंतिम शब्द मुख से यही रहेंगे, देश मेरा विजय अमर रहे