जो मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए हर कष्ट सहन करते हैं,
रण में जो कभी हार नहीं माने उसको महाराणा प्रताप कहते हैं,
ये हिन्द झूम उठे गुल चमन में खिल जाएँ,
दुश्मनों के कलेजे नाम सुन के हिल जाएँ,
कोई औकात नहीं चीन-पाक जैसे देशों की
वतन को फिर से जो राणा प्रताप मिल जाएँ.
प्रताप की गौरव गाथा हर कोई सुनाएगा गाकर
मेवाड़ धरा भी धन्य हो गई प्रताप जैसा पुत्र पाकर
ये हिन्द झूम उठे गुल चमन में खिल जाएँ
दुश्मनों के कलेजे, नाम सुन के हिल जाएँ
वतन को फिर से जो राणा प्रताप मिल जाएँ
आगे नदिया पड़ी अपार
घोड़ा कैसे उतरे उस पार,
राणा ने सोचा इस पार
तब तक चेतक था उस पार.
जब-जब तेरी तलवार उठी, तो दुश्मन टोली डोल गयी
फीकी पड़ी दहाड़ शेर की, जब-जब तुने हुंकार भरी
इकबाल था बुलंद, उसे धूल कर दिया
मद जिसका था प्रचंड, सारा दूर कर दिया
राणा प्रताप इकलौते, थे ऐसे वीर जिसने
अकबर का सारा घमंड, चूर चूर कर दिया
चेतक पर चढ़ जिसने, भाले से दुश्मन संघारे थे
मातृ भूमि के खातिर, जंगल में कई साल गुजारे थे
साहस का प्रतीक नीले घोड़े पर सवार
वीरता का प्रतीक मेरा मेवाड़ी सरदार
प्रताप का सिर कभी झुका नहीं
इस बात से अकबर भी शर्मिंदा था
मुगल कभी चैन से सो ना सके
जब तक मेवाड़ी राणा जिंदा था
करता हुं नमन मै प्रताप को, जो वीरता का प्रतीक है
तु लोह-पुरुष तु मातॄ-भक्त, तु अखण्डता का प्रतीक है